Add To collaction

हिंदी कहानियां - भाग 135

एक बार अकबर गहन सोच में थे, ऐसा लग रहा था परेशान हैं, तब एक दरबारी ने उनसे उनकी परेशानी का कारण पूछा. तब अकबर ने बताया उनके बेटे सलीम को अंगूठा चूसने की एक गंभीर गलत आदत पड़ गई हैं. जैसे- जैसे वे बड़े होते जा रहे हैं, इस आदत की वजह से हम सभी परेशान हैं लेकिन शहजादे जिद्दी हैं और किसी की नहीं सुनते. तब उस दरबारी ने अकबर को एक संत के विषय में बताया, उसने कहा कि एक संत हैं कहते हैं कि उनसे जो एक बार बात कर लेता हैं वो उनकी हर बात सुनता हैं और अपनी सारी बुराई त्याग देता हैं.


उसकी बाते सुन अकबर को अपनी परेशानी का हल उस संत में दिखाई दिया और अकबर ने उस संत को दरबार में लाने का आदेश दे दिया. कुछ समय बाद संत को दरबार में बुलाया गया, उनका आदर सत्कार किया गया. तब संत ने लाने का कारण पूछा. अकबर ने उन्हे सलीम की अंगूठा चूसने की आदत के बारे में बताया और कुछ उपाय करने कहा.

अकबर और सभी दरबारी टकटकी लगाये संत को देखने लगे, कि वो क्या उपाय करता हैं, लेकिन संत कुछ देर सोचने के बाद बोला उसे एक हफ्ते का समय चाहिए और ऐसा कहकर वो बिना सलीम से मिले चला गया. उस समय दरबार में महान बीरबल भी मौजूद थे. 

एक हफ्ते बाद संत आया और उसने सबसे पहले सलीम को बुलाया और उससे बहुत देर बाते की और उन्हे खेल- खेल में यह सिखाया, कि अंगूठा चूसना सेहत के लिए हानिकारक हैं, इसलिए उन्हे ऐसा नहीं करना चाहिए और सलीम को बात समझ आ गई और उन्होने सबके बीच कभी अंगूठा ना चूसने की कसम खाई.

संत ने जो बाते सलीम को समझाई वो सभी आम बाते थी, वो चाहता तो यह बात उसी दिन दरबार में कह सकता हैं, लेकिन उसने हफ्ते का समय लिया. यह बात अकबर और दरबारियों को हजम नहीं हुई और उन्होने इसे दरबार की तौहीन माना और अकबर से संत को सजा देने की मांग कर डाली. अकबर भी दरबारियों की बात से सहमत थे और उन्होने भी सजा देना तय किया, लेकिन जैसे कि वे हर फैसले के पहले बीरबल का मशवहरा लेते थे, उन्होने इस बार भी बीरबल की तरफ देखा और पूछा कि आज तुम इतने खामोश क्यूँ हो ? क्या तुम्हें नहीं लगता इस संत को सजा मिलनी चाहिये?

तब बीरबल अपने अंदाज में खड़ा होता हैं, दरबार के बीच जाकर कहता हैं कि जहाँपनाह में बिलकुल उल्टा सोच रहा हूँ इसलिए खामोश हूँ. सभा में हल्ला मचने लगता हैं सभी को आश्चर्य हैं कि उल्टा मतलब क्या ? तब बीरबल कहता हैं मेरे हिसाब से ये संत महान हैं, हमे इनसे सीख लेनी चाहिये और गुरु मानकर इनका आशीर्वाद लेना चाहिये और इनके साथ हुई गुस्ताखी की माफी भी मांगनी चाहिये. यह सुनकर सभी को गुस्सा आ जाता हैं और दरबार में कोहराम मच जाता हैं. तब अकबर गुस्से में बीरबल से कहता हैं, गुस्ताख़ बीरबल तुम हम सभी की तौहीन कर रहे हो, कि हम इस संत से माफी मांगे.

तब बीरबल कहता हैं – जहाँपनाह गुस्ताख़ की नाफ़रमानी को माफ करे, लेकिन मेरे मुताबिक यही न्यायसंगत हैं. अकबर कहता हैं बीरबल अपनी बात को साबित करो.

तब बीरबल बताता हैं – जिस दिन संत पहली बार दरबार आए थे और आप उनसे शहजादे की बात कर रहे थे, तब इनके हाथों में चुने की एक डिबिया थी, जिससे निरंतर चुना निकाल कर वे खा रहे थे, लेकिन आज उनके हाथ में कोई डिबिया नहीं हैं, क्यूंकि जब आप उनसे शहजादे की गलत आदत की बता कर रहे थे, तब ही उन्हे अपनी गलत आदत का अहसास हुआ और उन्होने एक हफ्ते का समय खुद को सुधारने के लिए मांगा और अपने आपको सुधारकर उन्होने आज सलीम को ज्ञान दिया. ऐसे लोग बहुत कम होते हैं जो पहले खुद की कमी को देखे और उसे सुधारे, इसलिए मेरे हिसाब से ये एक महान संत हैं. सभी को बात समझ आती हैं और सभी संत से माफी मांग उनसे आशीर्वाद लेते हैं.

   0
0 Comments